Acupressure Definition Principles and Meaning by various scholars, ऋषि-मनियों द्वारा शरीर के विभिन्न point पर दबाव देकर या मालिश द्वारा उपचार किया जाता रहा है।
प्राचीन काल से ही हमारे देश में एक्यूप्रेशर, एक्यूपंचर पद्धति का उपयोग स्वास्थ्य लाभ के लिए किसी न किसी रूप में सदियों से होता रहा है। नीचे एक्यूप्रेशर पॉइंट चार्ट में देख सकते हैं।
इन बिंदुओं का उल्लेख हमारे प्राचीन ग्रंथ आयुर्वेद में मर्म चिकित्सा के रूप में हुआ है। प्राचीन काल में सूची भेदन के द्वारा भी उपचार होता रहा, बाद में यह पद्धति बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा श्रीलंका, चीन व जापान ले जाई गई और इसका संपूर्ण एवं उचित विकास चीन देश में हुआ।
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आज विभिन्न देशों जैसे अमेरिका में रिफ्लेक्सोलॉजी, जापान में शियात्सु, चीन में एक्यूपंचर, जर्मनी में इलेक्ट्रो एक्यूपंचर, कोरिया एवं रूस में सर पार्क जी द्वारा प्रतिपादित सुजोक एक्यूप्रेशर के रूप में जाना जाता है।
Acupressure Definition Principles and Meaning
एक्यूपंचर दो शब्दों के योग से बना है। एक्यू→सूचिका एवं पंचर →भेदन। अर्थात शरीर पर स्थित विभिन्न POINT का सूचिका भेदन द्वारा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करना।
इन POINTS पर उंगलियों का प्रयोग करके पंचर के स्थान पर दबाव दिया जाना है एक्यूप्रेशर कहलाता है तथा इन्हीं प्वाइंटों पर केवल रंगों का प्रयोग करके उपचार करना ही रंग चिकित्सा है।
हमारे ऋषि-मुनियों को रंगो के उपयोग का संपूर्ण ज्ञान था। होली के त्यौहर पर प्राकृतिक रंगों जैसे पीला, हरा, अबीर मुंह से सारे शरीर को सिंचित किया जाता था, जिसका प्रभाव हमारे शरीर के IMMUNE SYSTEM पर पड़ता है।
प्राचीन भारतीय परंपराओं में विवाहित स्त्रियां माथे के मध्य भाग पर बिंदी लगाती रही हैं। लाल रंग शरीर में रक्त संचार में वृद्धि करता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह स्थान Pitutary Gland से संबंधित है, जिससे स्त्रियों में सुंदरता बनी रहती है।
इसके विपरीत विधवा स्त्रियों को उस स्थान पर चंदन लेपन की सलाह हमारे पूर्वजों ने दी है, जिससे काम भाव शांत हो सके। इस प्रकार रंगों का प्रयोग हमारे पूर्वज प्राचीन काल से ही किसी न किसी रूप में शरीर साधना के लिए करते रहे हैं।
परंतु आज पुन: बढ़ती हुई बीमारियों के दुष्प्रभाव ने अनेक वैकल्पिक उपचार पद्धतियों को जन्म दिया, जिसमें से रंगो द्वारा एक्यूप्रेशर उपचार अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
Acupressure Definition Principles and Meaning by various scholars
विभिन्न विद्वानों ने एक्यूप्रेशर की अलग-अलग परिभाषाएं प्रस्तुत की है जो इस प्रकार है।
डॉ पार्क → प्रकृति ने हमारे हाथों एवं पैरों की संरचना इस ढंग से की है कि उनमें शरीर के सभी अंगों एवं अवयवों से सादृश्यता है। सादृश्य केंद्रों पर दबाव देकर या अन्य माध्यमों से शरीर की ऊर्जा शक्ति को बढ़ा करके शारीरिक असहजता का उपचार किया जा सकता है।
डॉ फिटजजेराल्ट →इनका मानना है कि पैरों के तलवों और हथेलियों में स्थित ज्ञान तंतु ढक जाते हैं जिससे शरीर की विद्युत चुंबकीय शक्ति का भूमि से संपर्क नहीं हो पाता, किंतु इस विधि द्वारा दबाव के उपचार से ज्ञान तंतुओं के छोर पर हुआ जमाव दूर हो जाता है और शरीर की चुंबकीय तरंगों का पुन: मुक्त संचरण होने लगता है।
महर्षि सुश्रुत →शल्य चिकित्सा के जनक ने रोगों में हाथ की हथेलियों एवं पैरों के तलवों के विभिन्न बिंदुओं पर पड़ने वाले दबाव के ज्ञान को प्रतिपादित किया। जिसकी पुष्टि एक्यूप्रेशर उपचार में होती है।
श्री देवेन्द्र वोरा→ अपनी पुस्तक ‘आपका आरोग्य, आपके हाथों में’ उल्लेख करते हुए कहा है की एक्यूप्रेशर एक ऐसा प्राकृतिक विज्ञान है जो हमारे शरीर की आंतरिक संरचना द्वारा वांछित भाग में आवश्यकतानुसार प्राण ऊर्जा पहुंचा कर हमें रोगों से दूर करना सिखाता है।
महर्षि चरक→इन्होंने अनेक शारीरिक एवं मानसिक रोगों को दूर करने, रक्त संसार को ठीक करने, मांसपेशियां को सशक्त बनाने तथा संपूर्ण शरीर विशेषकर मस्तिष्क तथा चित को शांत रखने के लिए गहरी मालिश असार एक्यूप्रेशर की सिफारिश की थी।
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य →शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जीवनी शक्ति एक विशेष अदृश्य रेखाओं से आती है जिसका संबंध संपूर्ण शरीर से है। उन बिंदुओं पर सुई का स्पर्श (एक्यूपेंचर) या थोड़ा दबाव देने से दर्द या रोग तुरंत समाप्त हो जाता है जटिल शल्य चिकित्सा से उत्पन्न दर्द को भी इन दवाओं से आराम मिल सकता है।
एम पी खेमका जी →1 शरीर के रक्त एवं body fluids के स्थानांतरण की विधा को एक्यूप्रेशर कहते हैं। 2 शरीर के किसी निश्चित बिंदुओं पर दबाव देकर उर्जा के रुकावट को नियमित करना एक्यूप्रेशर है। 3 उर्जा को संतुलित कर शरीर को ठीक करने की विद्या को एक्यूप्रेशर कहते हैं।
एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का इतिहास
एक्यूप्रेशर पद्धति का उद्भव स्थल या प्रथम आविष्कार भारतवर्ष ही है। प्राचीन काल से ऋषि मुनि इस चिकित्सा पद्धति का प्रयोग करते रहे हैं। एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति पूर्णतया प्राकृतिक चिकित्सा है।
मर्म चिकित्सा या नाड़ी शास्त्र हमारी संस्कृति की अनुपम देन है, इनमें नाड़ियों या मर्म बिंदुओं के अंतिम, मध्य तथा आरंभिक बिंदुओं पर दबाव डालकर नाड़ी तंत्र को उत्तेजित व अनुतेजित कर सभी प्रकार के रोगों का इलाज किया जाता था। मालिश चिकित्सा पद्धति का मूल आधार एक्यूप्रेशर चिकित्सा को ही माना जाता है।
कुछ विद्वानों का मानना है कि भगवान बुध के समय में यह चिकित्सा पद्धति अपनी उन्नति के चरम पर थी। बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के साथ इसका भी विस्तार चीन, जापान, कोरिया आदि पूर्वोत्तर देशों में हुआ और ये वहां के लोगों के रहन-सहन में रच बस गई जो कि एक्यूपंचर के नाम से प्रसिद्ध है।
यही कारण है कि एक्यूपंचर में उन्हीं बिंदुओ का प्रयोग किया जाता है जो एक्यूप्रेशर के मूल में विद्यमान हैं। विद्वानों का कहना है कि लगभग 4000 वर्ष पूर्व यह चिकित्सा भारतवर्ष में अपने सर्वोत्तम विकास पर थी तथा यहां से इस चिकित्सा का विकास पूर्वोत्तर देशों में फैला जहां पर इसे आधुनिक विकास के साथ जोड़कर एक्यूपंचर का नाम दे दिया गया।
डॉ एंटन जयसूर्या के अनुसार → इस चिकित्सा पद्धति के श्रीलंका तथा भारत में ऐसे शिलालेख तथा प्रमाण मिले हैं जो लगभग 2000 वर्ष से 4000 वर्ष पुराने हैं। यह शिलालेख विभिन्न एक्यूप्रेशर बिंदुओं को दर्शाते हैं तथा इन शिलालेखों के माध्यम से न केवल मानव मात्र की चिकित्सा के प्रमाण मिले बल्कि पशुओं की चिकित्सा के भी प्रमाण मिले हैं जिन्हें युद्ध में घायल हाथी घोड़ों की शिक्षा के लिए प्रयोग किया जाता था।
एक्यूप्रेशर/एक्यूप्रेशर पद्धति कितनी पुरानी है तथा इसका किस देश में आविष्कार हुआ, इस बारे में अलग-अलग मत है। आयुर्वेद की पुरातन ग्रंथों में प्रचलित एक्यूप्रेशर/ एक्यूपंर पद्धति का वर्णन है, इसे आयुर्वेद में मर्म चिकित्सा व सूची भेदन के नाम से जाना जाता है।
प्राचीन काल में चीन से जो यात्री भारत वर्ष आए, उनके द्वारा इस पद्धति का ज्ञान चीन में पहुंचा, वहां यह चिकित्सा पद्धति काफी प्रचलित हुई। चीन के चिकित्सकों मैं इस पद्धति के आश्चर्यजनक प्रभाव को देखते हुए इसे व्यापक तौर पर अपनाया और इसको अधिक लोकप्रिय तथा समृद्ध बनाने के लिए काफी प्रयास किया। यही कारण है कि आज सारे संसार में चीनी चिकित्सा पद्धति के नाम से मशहूर है।
डॉ आशिमा चटर्जी, भूतपूर्व MP ने 2 जुलाई 80 को राज्यसभा में यह रहस्योद्घाटन करते हुए कहा था कि एक्यूपंचर का आविष्कार चीन में नहीं अपितु भारत वर्ष में हुआ था। इसी प्रकार 10 अगस्त, 1984 को चीन में एक्यूपंचर संबंधी हुई एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोलते हुए भारतीय एक्यूपंचर संस्था के संचालक डॉ पी. के. सिंह ने तथ्यों सहित यह प्रमाणित करने की कोशिश की थी कि एक्यूपंचर का अविष्कार निश्चित ही भारत वर्ष में हुआ था।
भारत में Acupressure पद्धति लुप्त होने के कारण
समय के साथ जहां इस पद्धति का चीन में काफी प्रचार प्रसार बढ़ा। भारतवर्ष में यह पद्धति लगभग लुप्त सी हो गई। इसके कई मुख्य कारण थे। विदेशी शासन के कारण जहां भारत वासियों के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक जीवन में काफी परिवर्तन आया वही सरकारी मान्यता के अभाव के कारण एक्यूप्रेशर/ एक्यूपंचर सहित कई अन्य प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति फल फूल नही सकी।
फिर भी आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में कई नई पद्धतियां प्रचलित हो गई है पर चीन में एक्यूपंचर काफी लोकप्रिय पद्धति है। गत कुछ वर्षों में चीन से इस पद्धति का ज्ञान संसार के अनेक देशों में पहुंचा है। भारत सहित कई देशों के चिकित्सक इस पद्धति का चीन से ज्ञान प्राप्त करके आए हैं।
ऐसा अनुमान है कि छठी शताब्दी में इस पद्धति का ज्ञान बौद्ध भिक्षुओं द्वारा चीन से जापान में पहुंचा। जापान में इस पद्धति को शियात्सू (SHIATSU) कहते हैं। शियात्सु जापानी शब्द है जो दो अक्षरों शि -SHI अर्थात उंगली तथा ATSU -आत्सु अर्थात दबाव से बना है। शियात्सु पद्धति के अनुसार हाथों के अंगूठे अथवा उंगलियों के साथ ही विभिन्न SHIATSU केंद्रों पर प्रेशर किया जाता है।
भारतीय संस्कृति की दृष्टि में Acupressure Definition Principles and Meaning
भारतीय संस्कृति में बाजू तथा पांव में निश्चित केंद्रों को दबाकर पेट की अग्नि को ठीक करना हाथों पांव की मालिश द्वारा शरीर के कई अन्य रोगों जैसे बेहोशी, बुखार, चक्कर आना आदि ठीक करना इस चिकित्सा के भारतीय होने के प्रमाण हैं। रात्रि काल तथा सोने के समय बुजुर्गों द्वारा पैर या पीठ का दबवाना इसके उदाहरण हैं जो हमारे समाज में रामायण तथा महाभारत काल से पूर्व आर्य सभ्यता में भी मिलते हैं।
कर्ण छेदन की परंपरा
भारतीय संस्कृति में कर्ण छेदन इस प्रणाली के भारतीय होने का सबसे बड़ा प्रमाण है चिकित्सा शास्त्रियों का मानना है कि कानों के छेदन द्वारा बुद्धि का प्रखर विकास होता है तथा सोचने की शक्ति का विकास होता है जिससे सही निर्णय ले पाता है। स्त्री जाति के बारे में माना जाता है कि वह अधिक वाचाल होती है और अधिक बोलने वाले प्राणी ने केवल अपने लिए बल्कि दूसरों के लिए भी खतरनाक सिद्ध हो सकते हैं।
आधुनिक शिक्षा शास्त्रियों के अनुसार कारण छेदन का स्थान मनुष्य की जीभ से संबन्धित दाब बिंदु होता है अतः इस स्थान पर छेद करने से व आभूषण डालने से जीभ नियंत्रित रहती है।
शरीर के वस्त्र आभूषण की दृष्टि से Acupressure Definition Principles
हाथ व पांव में कंगन तथा आभूषण डालने से जननेंद्रियां (SEX ORGAN) नियंत्रित रहती है बाएं हाथ का कंगन ह्रदय का पोषण करता है तथा रक्तचाप को नियंत्रित करता है, कामवासना को संतुलित रखता है। बाजूबंद के प्रयोग से ह्रदय, छोटी आंत, बड़ी आंत, शरीर के एनर्जी केंद्र नियंत्रित रहते हैं जिससे मनुष्य में वीरता डोलता का विकास होता है क्योंकि इसका प्रभाव बायसेप्स ट्राइसेप्स पेशियों पर प्रभावी रूप से पड़ता है।
गले में पहने गए गहनों के प्रभाव से गला, फेफड़ों व शरीर की थायराइड ग्रंथियों का नियंत्रित रहने से शरीर का सर्वांमुखी विकास होता है। क्योंकि शरीर विज्ञान के अनुसार इस ग्रंथि की क्रियाशीलता के संतुलित रहते शरीर की प्लानिंग नियमित कैसे होती है भारतीय समाज में स्त्री का कद छोटा होने तथा जननेंद्रियां संबंधी समस्याओं की अधिकता के कारण ही उसके लिए अधिक गहनों का प्रयोग बतलाया गया है ताकि सुंदरता के साथ-साथ उसका शारीरिक विकास भी संतुलित रहे।
बिंदिया मानसिक व बौद्धिक संतुलन, जो एवं विचार शक्ति का नियंत्रण करता है कमरबंद मूलाधार का विकास, किडनी, मूत्राशय व मलाशय तथा जीवनी शक्ति के विकास व नियंत्रण पर प्रभाव डालती है।
ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से Acupressure Definition Principles
आधुनिक युग में विभिन्न हीरों, पत्थरों, नगीनों तथा आभूषणों का प्रयोग मात्र फैशन ही नहीं है बल्कि इसका प्रयोग ज्योतिष शास्त्र में महत्वपूर्ण है। परंतु इन सभी के मूल में एक्यूप्रेशर चिकित्सा समाई हुई है। प्रत्येक आभूषण तथा हीरे व पत्थर इत्यादि का एक कोना एक प्रकार अंगूठी में डाला जाता है ताकि वह मनुष्य की उंगली की किसी ने किसी नाडी को प्रभावित करता रहे।
पत्थर की आकृति एवं विशेष कोण द्वारा नाड़ी पर पड़ता प्रभाव न केवल शरीर पर पड़ने वाले कॉस्मिक प्रभाव की दिशा को बदल देता है बल्कि नाडी दाब द्वारा मनुष्य के स्वास्थ्य में भी परिवर्तन लाता है। जिससे स्वास्थ्य के साथ साथ जीवन में सुख शांति का भी रसस्वाद आने लगता है।
यौगिक दृष्टि से Acupressure Definition Principles
एक्यूप्रेशर चिकित्सा मनुष्य की न केवल शारीरिक पहलू का विकास करती है बल्कि उसे सही दिशा देने तथा आध्यात्मिक विकास में भी महत्वपूर्ण है। योग शास्त्र में जिन विभिन्न मुद्राओं का प्रयोग किया जाता है उन सभी के मूल में भी दाब बिंदु समाए हुए हैं जहां से शरीर में ऊर्जा को नियंत्रित किया जाता है।
उदाहरण के लिए योग मुद्रा में प्रथम उंगली का जो बिंदु अंगूठे को छूता है वह शरीर में ऑक्सीजन को नियंत्रित करने का काम करता है जो ऑक्सीजन शरीर में ऊर्जा शक्ति का कार्य करती है तथा शरीर पर ठंडा प्रभाव डालती है जिससे शरीर में ऊर्जा संचरण से ठहराव व शांति पैदा होती है।
Acupressure method is based on the principle of energy
एक्यूप्रेशर उपचार पद्धति ऊर्जा के सिद्धांत पर आधारित है शरीर ऊर्जा का एक पिंड है वैज्ञानिक जगत इसे Energy is the capacity of doing work कार्य की क्षमता को ऊर्जा कहा है।
हम सब जानते हैं कि हमारे शरीर में हाथ पैर, आंख, नाक, कान, लिवर, किडनी, आतें और ह्रदय आदि सभी अपना अपना कार्य करते हैं। सबकी अपनी कार्य की क्षमता है। यह क्षमता ही प्रत्येक भाग,अंग अव्यव की ऊर्जा है। इसका संचालन Brain करता है, जो कि शरीर में स्थित ऊर्जा का असीमित स्रोत है। Acupressure point दबाने पर इसी ऊर्जा में गति उत्पन्न करके रोगों को दूर किया जाता है।
शरीर के आंतरिक और बाहरी सभी अंग आवश्यकता पड़ने पर सुनिश्चित विधि से कार्य करते हैं। वे सुचारू रूप से तभी कार्य कर सकते हैं जब उनमें समुचित ऊर्जा हो। यदि उर्जा के प्रभाव मार्ग में बाधा होगी तो कहीं ऊर्जा की अधिकता और कहीं कमी होती है। निश्चित रूप से ऐसी दशा में जब मनुष्य का कोई अंग वांछित कार्य न कर पा रहा हो तो उसे असहजता महसूस होती है यह का परिचायक है।
ऊर्जा के बहाव के रुकने पर दो प्रकार की स्थितियां जन्म लेती है।, एक तरफ ऊर्जा की अधिकता दूसरी तरफ़ ऊर्जा की न्यूनता। इस प्रकार उपचार पद्धति में ऊर्जा प्रवाह में आई हुई बाधाओं को हटाकर ऊर्जा का सुचारू संचरण सुनिश्चित किया जाता है। ऊर्जा प्रवाह में आए उपरोक्त बाधाओं को हटाने के लिए हमें शरीर के विभिन्न Acupressure Points पर ऊर्जा के बहाव में अंतर पैदा करना पड़ता है।
ऊर्जा की गति उच्च स्तर से निम्न स्तर की तरफ होती है उदाहरणार्थ हवा Higher Pressure से Lower Pressure की ओर चलती है। बिजली Higher Potential से Lower Potential की तरफ जाती है। जल ऊपर से नीचे बहता है और चुंबकीय बल North Pole से South Pole की तरफ चलती है।
उपरोक्त उदाहरणों से एक बात स्पष्ट होती है कि शरीर के विभिन्न भागों में दबाव देकर उपरोक्त प्रकार के ऊर्जा स्तरों में अंतर पैदा कर सकते हैं जिससे ऊर्जा एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थांतरित हो सकती है। ऊर्जा स्तरों में अंतर पैदा करने के लिए हम विभिन्न तरीके और माध्यम प्रयोग में लाते हैं। ये सभी Acupressure की विधा के अंतर्गत आता है।
एक्यूप्रेशर में दबाव देने के साथ ही शरीर में दो प्रकार के क्षेत्र होंगे। एक वह जिस पर दबाव पड़ रहा है दूसरा वह जिस पर दबाव नहीं पड़ रहा है अर्थात दोनों क्षेत्रों में ऊर्ज के सत्रों में अंतर पैदा हो जाएगा। यह अंतर ही ऊर्जा के भाव का कारण बन जाता है। इस प्रकार अलग-अलग बिंदुओं पर दबाव उत्पन्न करके ऊर्जा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है। इस सिद्धांत के अनुसार हम शरीर में जहां ऊर्जा के दिखता है वहां से जहां ऊर्जा की न्यूनता वाले क्षेत्र में ऊर्जा स्थानांतरित करते हैं।
चीन के दार्शनिकों ने द्रव्यात्मक संसार के अनंत द्रव्याें में उर्जा को अलग प्रकार से परखा एवं समझा, उनके अनुसार 5 प्रकार की विभिन्न ऊर्जाओं के 5 अलग अलग प्रकार के उपादान हैं।
- वृक्ष → नया पैदा करने की क्षमता
- अग्नि → गति विकास का कारक
- पृथ्वी → एकत्रीकरण का कारक
- धातु → वस्तु को विशद रूप एव सुनिश्चित आकार देने की क्षमता
- जल → सृष्टि/संरचना के अंतिम अवस्था के संप्राप्ति की क्षमता
जब तक इन पांचों तत्वों के शरीर में साम्यवस्था है, शरीर स्वस्थ है। आवश्यकतानुसार यदि तत्व एवं उसकी ऊर्जा शरीर के विभिन्न अंगों को ना मिले तो शरीर अस्वस्थ कहलाता है। ऐसे समय में किस प्रकार शरीर की ऊर्जा को वांछित स्थान तक पहुंचाया जाए इसका पूरा ज्ञान एक्यूपंचर/एक्यूप्रेशर में है।
Types of Acupressure Therapy
एक्यूप्रेशर चिकित्सा के विभिन्न प्रकार बताए गए हैं किंतु महत्वपूर्ण प्रकार निम्न प्रकार से हैं
- SUJOK THERAPY
- REFFLECSOLOGY
- JONOLOGY
- MERIDIYANOLOGY
- ELECTRO ACUPUNCTURE
- AYURVEDIC ACUPRESSURE
एक्यूप्रेशर चिकित्सा में दाब की विधियां
Acupressure Definition Principles के साथ साथ इसकी चार विधियां हैं जो इस प्रकार है।
- समान दिशा दाब विधि (Clockwise Pressure)
2. विपरीत दिशा दाब विधि (Anticlockwise Pressure)
3. सामान्य दाब विधि (Normal Pressure)
4. विद्युतीय दाब विधि (Electric Pressure)
समान दिशा दाब विधि (Clockwise Pressure) :- शरीर में घटी हुई ऊर्जा को बढ़ाने के लिए समान दिशा का विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में एक्यूप्रेशर का प्रयोग घड़ी की सुई के समान दिशा में किया जाता है। जिससे कॉस्मिक ऊर्जा तथा शारीरिक ऊर्जा में संतुलन कायम रहता है। उपचार वाले सा point पर एक से 10 की गिनती गिनते हुए या फिर 10 सेकंड तक दबाव दें, बिंदुओं पर दबाव ईतना हो ताकि दबाव का एहसास शरीर में हड्डी के सदर तक जाए।
घटी हुई ऊर्जा के लक्षण :- निष्क्रियता, सुन्नपन, अपचक, भूख न लगना, नजला, खांसी, जुखाम, रक्ताल्पता,चमड़ी का पीलापन,आखों में पीलापन, शरीर का भारीपन, नींद अधिक आना, अकड़न, शरीर की शीतलता आदि।
विपरीत दिशा दाब विधि (Anticlockwise Pressure)
शरीर में बढ़ी ऊर्जा को घटाने के लिए विपरीत दिशा गांव विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में एक्यूप्रेशर का प्रयोग घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में किया जाता है आगे उक्त प्रक्रिया को 30 सेकंड तक दोहराएं।
बढ़ी हुई ऊर्जा के लक्षण → अति क्रियाशीलता, पित्त वर्दी, दस्त, सिर दर्द, उच्च रक्तचाप, शरीर में जलन, लालीपन, एसिडिटी, भूख की अधिकता, नींद की कमी, उल्टि या बेचैनी इत्यादि।
सामान्य दाब विधि (Normal Pressure)
इस विधि का प्रयोग उन रोगों के लिए किया जाता है, जिन के विषय में उपचारक को यह ज्ञात नहीं हो पाता कि ऊर्जा बढ़ी या घटी हुई है। इसमें दबाव रोगी की सहनशक्ति के अनुसार ही दिया जाता है।
अज्ञात ऊर्जा के लक्षण→ धातु, क्षीणता, तुतलाना, थकान, रक्त दोष, कुबड़ापन, सूखापन, स्वप्न दोष, टॉन्सिल, मिर्गी आदि।
विद्युतीय दाब विधि (Electric Pressure)
इस विधि के उपचार में आधुनिक विद्युत चालित वाइब्रेटर यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। जो शरीर में ऊर्जा संचरण के लिए चुंबकीय वाइब्रेशन पैदा कर दाब बिंदुओं पर अधिक प्रभाव डालता है। इसका प्रयोग हाथ पैर व पीठ के क्षेत्र में रक्त संचरण हेतु किया जाता है जिससे ऊर्जा पथ में आए हुए अवरोध दूर हो जाते हैं।
Acupressure Definition Principles और विशेषता
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- इस प्रणाली के कोई दुष्परिणाम नही है।
- यह औषधि रहित चिकित्सा प्रणाली है।
- इस पद्धति से रोगी की रक्षा व रोग की समाप्ति होती है।
- यह कष्ट रहित चिकित्सा प्रणाली है।
- रोगी अपनी चिकित्सा स्वयं कर सकता है।
- यह कम खर्चीली चिकित्सा प्रणाली है।
- इस चिकित्सा प्रणाली में स्थान विशेष की कोई आवश्कता नही होती।
- यह चिकित्सा दूसरे अन्य चिकित्सा पद्धति के साथ भी चल सकती है।
एक्यूप्रेशर चिकित्सा से उपचार के प्रतिप्रभाव एवं बचाव :-
- एक्यूप्रेशर उपचार उपरांत चक्कर या बेहोशी हो तो किया गया उपचार हटा कर, लेटा दें। नाक के नीचे व पैर के तलवों के गहरे भाग को हल्का दबाव दें।
- उपचारोपरांत पतले दस्त शारीरिक सफाई का संकेत है, घबराएं नही। अधिक होने पर उपचार बंद कर, चिकित्सक से संपर्क करें।
- शारीरिक व मानसिक स्तर पर तीव्र परिवर्तन होता है। जिससे क्रोध, चिड़चिड़ापन, उदासी व आनन्द आदि घटना बढ़ना हो सकता है।
- एक्यूप्रेशर उपचार के पश्चात मूत्र त्याग की मात्रा बढ़ जाती है, जो कुछ दिनों में ठीक हो जाती है।
- उपचार के तुरंत बाद नींद का आना, स्वास्थ्य का सूचक है।
Benefits of Acupressure Therapy
एक्यूप्रेशर चिकित्सा के महतवपूर्ण लाभ निम्न है जो इस प्रकार है :-
- यह एक सहज, सरल एवं प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान है।
- एक्यूप्रेशर से हमें तुरंत लाभ मिलता है।
- इससे हर प्रकार के रोगों की चिकित्सा संभव है।
- यह चिकित्सा सर्वसुलभ एवं प्रतिप्रभाव से मुक्त है।
- इसमें किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं होती।
- इसमें समय, श्रम व धन की बचत होती है।
- इसके परिणाम तुरंत ही प्राप्त होते हैं।
- एक्यूप्रेशर द्वारा हम स्वयं की चिकित्सा कर सकते हैं।
- शारीरिक व मानसिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
- शरीर के संपूर्ण तंत्र सुचारू रूप से कार्य करते हैं।
- शरीर में आवश्यक तत्वों का प्रसार कर मासपेशियों के तंतुओं में स्फूर्ति त्वचा में चमक पैदा करती है।
- बिना औषधि की कम खर्चीली शिक्षा पद्धति है।
- यह पीड़ा रहीत तथा सुरक्षित चिकित्सा पद्धति है।
Acupressure ki सीमाएं
- ऑपरेशन, फोड़े व घाव के स्थान पर 3 से 6 महीने तक उपचार नहीं करना चाहिए।
- गर्भवती महिलाओं को 3 माह के बाद कुछ विशेष बिंदुओं पर उपचार नहीं देना चाहिए।
- महिलाओं में मासिक धर्म के समय उपचार नहीं करना चाहिए।
- दबाव 10 – 10 सैकेंड तक एक प्वॉइंट पर दिन में तीन बार खाली पेट उपचार करना चाइए।
- सादृश्य बिंदुओं पर मैग्नेट आदि से उपचार 5 से 8 घंटे तथा छोटे बच्चों में 3 से 4 घंटे तक ही रोग के अनुसार लगाना चाहिए।
- एक्यूप्रेशर का उपचार भोजन से 1 घंटे पूर्व तथा दो-तीन घंटे बाद ही करवाना चाहिए।
- 7 साल से कम उम्र के साथ 70 साल से अधिक उम्र के व्यक्तियों का उपचार सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
Acupressure upchar में सावधानियाँ
- साफ, हवादार, शांत व अनुकूल वातावरण होना चाहिए।
- रोगी को बिठाकर अथवा लेटा करके उपचार करें।
- टूटे-फूटे, चोट या ऑपरेशन वाले स्थान पर चिकित्सा नहीं करनी चाहिए।
- चिकित्सा के दौरान अपने दोनों हाथ पैर क्रास ना करें।
- उपचार के समय रोगी व चिकित्सक दोनों तनाव रहित, शांत चित्त स्थिति में हो।
Acupressure (REFFLECSOLOGY) एवम् सूजोक में अंतर
- प्रतिबिंब सिद्धांत (REFFLECSOLOGY) एवम् सुजोक, दोनों ही एक्यूप्रेशर चिकित्सा के भेद है।
- दोनों के सिद्धांत मिलता जुलता है किंतु रिफ्लेक्सोलॉजी मानव शरीर रचना के अनुसार पूर्णतः प्रतिस्थापित नहीं है।
- जैसे रिफ्लेक्सोलॉजी में आंख व कान हथेली में दर्शाया गया है क्योंकि दोनों का स्थान मस्तिष्क में होना चाहिए जो की सुजोक में स्पष्ट है।
- रिफ्लेक्सोलॉजी में रीढ़ की हड्डी अंगूठे के बाहरी भाग में बताया गया है, जबकि सुजोक में मध्य के दो उंगलियों के बीचों बीच हथेली के पीछे वाले भाग में बताया गया है।
- Acupressure (रिफ्लेक्सोलॉजी) में शरीर के दाहिने भाग के अंग को दाएं हथेली पर बाएं भाग को बाएं हथेली पर स्पष्ट रूप से अंकित किया गया है, जबकि सुजोक में प्राथमिक व द्वितीयक सादृश्य के अनुसार दोनों हाथों पर अंकित किया गया है।
- एक्युप्रेशर (रिफ्लेक्सोलॉजी) में हाथ व पैरों के उपचार के लिए हथेली पर कोई स्थान नहीं है जबकि सुजोक में दोनों ही हथेलियों पर सुस्पष्ट सादृश्य दर्शाया गया है।
मैं आशा करता हूं इस पोस्ट से आप Acupressure Definition Principles and meaning, लाभ हानि और सावधानियां आदि के बारे में बताया गया है। आप को अच्छे से समंझ भी आए होंगे, यदि आप को समझ न आए तो दोबारा इस पोस्ट को बारीकी से पढ़े ताकि सब कुछ विशेष प्रकार से समझ सके।
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